किसान आंदोलन 2020 21

Authore by Deepak yadav 
सरकार सितंबर 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई ,  जैसे तैसे संसद में यह तीनों कानून पास हो गए हैं पर किसानों को यहां पसंद नहीं आए किसानों ने सरकार से आगाह किया कि इन तीनों कानूनों को रद्द कर दिया जाए वरना हम आंदोलन करेंगे सरकार ने उनकी बात नहीं मानी,
 किसानों ने आंदोलन प्रारंभ किया किसान  दिल्ली की बॉर्डर पर जाकर खड़े हो गए पुलिस ने उन्हें वही रोक लिया खासकर इनमें से हरियाणा व पंजाब के किसान थे लगभग 6 महीने से चल रहे इस आंदोलन रहा था आखिरकार किसानों को इन कानूनों से क्या समस्या थी उनकी आंदोलन करने की क्या वजह थी किसानों का मानना था कि हमारी फसल मंडियों में नहीं बल्कि उद्योगपति खरीदेंगे वह भी मनमाने ढंग से, 
 मंडिया खत्म कर दी जाएगी इन कानून के बाद एमएसपी की गारंटी सरकार लिखित रूप में नहीं दे रही थी किसान चहा रहे थे कि इसकी गारंटी सरकार कानून में लिख कर दे एक समस्या यह भी है कि छोटे छोटे किसान जिलों में फसल नहीं भेज सकते थे तो वह दूसरे राज्यों में अपनी फसल लेकर कैसे जा सकते थे तथा किसी भी विवाद का न्याय क्षेत्र एसडीएम कार्यालय रखा गया था तो किसानों को sdm के पास जाने में भी समस्या हो रही थी तथा और बहुत सारी समस्या थी इस कानून में किसानों के लिए यहां पूंजीपतियों के लिए आया कानून है किसानों का मानना था कि यह कानून सिर्फ पूंजीपतियों की पूंजी बढ़ाई गा तथा उनके व्यापार का रास्ता खोल देगा लगभग 5 महीने से चल रहे इस आंदोलन में सरकार व किसानों की संगठन की अनेक बार बैठक हुई पर सरकार व किसानों के बीच कोई बात नहीं बनी किसान नेता में राकेश टिकैत तथा योगेंद्र यादव तथा अन्य किसान संगठन तथा नेता उसका नेतृत्व कर रहे थे सरकार की भी प्रतिक्रिया आंदोलन के प्रति नकारात्मक रही वह किसानों को खालिस्तानी बता रहे थे बीजेपी के कुछ नेता आंदोलन का बदनाम करने में लगे हैं आईटी सेल बीजेपी की किसानों को बदनाम करने में लगी थी आंदोलन में मीडिया की भी भूमिका बहुत नकारात्मक थी मीडिया की भूमिका जनता की आवाज उठाना था पर वह सरकार का साथ दे रही थी आज हंसी आती है लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर वह भी किसानों को बदनाम करने से बाज नहीं आए , यहां तक हो गई कि किसानों ने इसके बाद मीडिया वालों को अपने आंदोलन में घुसने नहीं दिया कुछ चैनल आंदोलन को खालिस्तानी बताने की खूब कोशिश कर रहे थे आंदोलन शांतिपूर्वक आगे बढ़ रहा था 2021 जनवरी में 26 जनवरी के दिन किसानों ने विशाल ट्रैक्टर रैली का आयोजन किया 26 जनवरी के दिन बड़ी शर्मनाक घटना घट गई किसान आंदोलन में कुछ असामाजिक तत्व घुस गए और लाल किले पर सिख धर्म का झंडा फहरा दिया यह दुर्भाग्य है कि जिस लाल किले पर तिरंगा फहराने का अधिकार है वहां किसी धर्म का झंडा लगा दिया
 किसानों ने कहा वह हमारे लोग नहीं थी जिस ने झंडा फहराया और बीजेपी के नेता का से संबंधित निकला और दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर  यहां सब उचित नहीं था हमारे लोकतंत्र का यह सबसे दुर्भाग्य पल था सरकार झुकने को तैयार नहीं थी किसान भी पीछे हटने को तैयार नहीं है आखिर ऐसे लोकतंत्र का क्या मतलब जहां हमारे ही नागरिकों की बात नहीं सुनी जाती हो एक तरफ मोदी सरकार किसानों की हित की बात करती है तथा दूसरी ओर अपने ही किसानों की बात नहीं सुनती है अभी तक 60 किसानों से ज्यादा ही मौत हो चुकी है मोदी जी अभी भी किसानों की मांग नहीं मानना चाहते ही आंदोलन महाराष्ट्र तथा अनेक राज्यों में धीरे-धीरे फैल रहा है और आगे देखते हैं यह कब तक चलेगा

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