गांधी को मारा जा सकता है गांधीवाद को नहीं

Authore By Deepak yadav 

महात्मा गांधी की विचारधारा को गांधीवाद के नाम से जाना जाता है. महात्मा गाँधी उस उस व्यक्ति का नाम हैं, जो असत्य को सत्य से, हिंसा को अहिंसा से, घ्रणा को प्रेम से तथा अविश्वास को विश्वास से जीतने में विश्वास करते थे.

भले ही आज गांधीजी नही हैं, लेकिन उनके विचारों, आदर्शों तथा सिद्धांतों के रूप में वे जिन्दा हैं. गाँधी के विचार क्रियात्मक योगदान में जितने उस समय प्रासंगिक थे, आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं.

महात्मा गाँधी ने जनभावना को महत्व देकर और परम्परागत राष्ट्रवाद की विचार धरा में सुधार करते हुए, 21 वीं सदी के भारत के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया.

महात्मा गाँधी ने विभिन्न प्रकार के रचनात्मक कार्यों के द्वारा विभिन्न समुदायों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य किया. गांधीवाद की विचारधारा परम्परागत राष्ट्रवाद के’ विचारों से ऊपर उठकर थी.

गांधी पूरे विश्व को अपना राष्ट्र मानते थे. वे भारतीय वैदिक परम्परा में कही गईं, बातों के अनुसार विश्व पूजन तथा माता भूमि पुत्रोः प्रथ्विया में विश्वास करते थे. मोहनदास करमचंद गाँधी ने संकटग्रस्त विश्व को भारतीय चिन्तन के अनुरूप बनाकर संसार को एक नई राह दिखाई.

आज भी गांधीवाद में सर्वधर्म सद्भाव की की निति की महत्वपूर्ण प्रासंगिकता बनी हुई हैं. सर्वधर्म समभाव यानि सभी मतों धर्मों के प्रति समान व्यवहार आज भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनिवार्यता बना हुआ हैं.

धर्म व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था का विषय हैं. उसे सामाजिक स्तर तक आने के लिए सर्वधर्म समभाव की भावना के अंतर्गत आना होगा.

धार्मिक कट्टरता आज के समय में आतंकवाद का रूप ले चुकी हैं, जिसका नतीजा हम सभी के समक्ष हैं. मानव धर्म के रूप में स्वामी विवेकानंद तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विश्व को मानवता की राह दिखाई थी. जिस तरह विज्ञान सार्वभौमिक हैं, उसी तर्ज पर धर्म भी सार्वभौमिक होना चाहिए.

गांधीवाद के अनुसार एक धर्म को श्रेष्ट समझने का अर्थ हैं, दूसरे धर्म को हीन समझना. महात्मा गाँधी ने दुनिया को इस तथ्य से अवगत कराते हुए धर्म को वैश्विक एवं सार्वभौमिक बनाने का प्रयत्न किया.

आज के आधुनिक समाज में भी संकुचित साम्प्रदायिकता धर्म एवं अंध कट्टरवाद को कैसे स्वीकार किया जा सकता हैं. धर्म को केवल नैतिकता का पर्याय मानना चाहिए.

आज के विश्व संकट का मुख्य कारण वैश्विक राजनीती का सिद्धांतहीन होना हैं. मैकियावेली की निति से असहमत होते हुए, गांधीवाद के अंतर्गत राजनीति में साधन शुद्धि का समावेश कर राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया. गांधीजी ने अन्याय का प्रतिकार करने के लिए शस्त्र के स्थान पर अशस्त्र पर बल दिया.

गांधी जी ने स्पष्ट किया था, कि जिस अनुपात में साधन का उपयोग होगा, उसी अनुपात में साध्य की प्राप्ति होगी. गांधीजी का समस्त चिन्तन एवं आचरण धर्म एवं राजनितिकता के सिद्धांतों पर आधारित हैं.

गांधी जी की दृष्टि में निति शून्य राजनीति सबसे निकृष्टतम हैं. इसी कारण छल कपट, दम्भ और अविश्वास का पोषण करने वाली राजनीती को धर्म विहीन होने के कारण नही मानते हैं.

आर्थिक क्षेत्र में गांधीवाद के अंतर्गत स्वदेशी एवं विकेंद्रीकरण के विचार का मूल्यांकन किया जा सकता हैं. वैश्वीकरण के नाम पर नाम पर शुरू हुए आर्थिक सुधारों से गरीबी मूल्यवृद्धि, बेरोजगारी, विषमता, अपराध, उपभोक्ता संस्कृति आदि में वृद्धि हुई हैं.

सिर्फ लाभ कमाने के लिए बाजार अर्थव्यवस्था में उत्पादन किया जा रहा हैं और प्रोद्योगिकी के माध्यम से प्रकृति से अन्याय कर रहे हैं.

गांधीजी ने प्रकृति एवं मनुष्य के नैसर्गिक सम्बन्धों और स्थायी विकास एवं समुचित तकनीक पर जोर दिया. गांधीवाद सादगीपूर्ण जीवन शैली, स्वदेशी की भावना 

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