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बढ़ती हुई महंगाई और मोदी सरकार

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Authore by Deepak Yadav  बढ़ती हुई महंगाई और मोदी सरकार वर्तमान स्थिति में आज भारत में सबसे बड़ी समस्या उभर कर आई है महंगाई आखिर इतने वर्षों में यह सबसे उच्चतम स्तर पर क्यों आई है इसका सबसे बड़ा कारण है सरकार का महंगाई को नियंत्रित में ना ला पाना , आज देश में पेट्रोल डीजल की कीमत इतिहास के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है वही खाद्यान्न चीज चीजों के भाव भी आसमान छू रहे हैं तथा मध्यम वर्ग की जरूरत की वह सारी चीजें जो एक घर को चलाने के लिए अति आवश्यक है उन सभी वस्तुओं का मूल्य दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है एक तरफ मोदी सरकार जनता को झूठे आश्वासन दे रही है तो दूसरी तरफ लोग महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त हो रहे हैं सरकार ने वादा किया था कि 2022 तक हम किसानों की आय दुगनी कर देंगे पर 2022 आधा बीत गया है पर किसानों की आय तो दुगनी नहीं हुई है बल्कि आई में कमी होती ही जा रही है , सरकार बात करती है वन नेशन वन मार्केट की सरकार बात करती है वन नेशन वन इलेक्शन की सरकार बात नहीं करती है वन नेशन वन इनकम कि आखिर क्यों इस देश का गरीब गरीब होता जा रहा है और उद्योगपति और अधिक अमीर होत...

वो गांधी को मार सकते हैं ! गांधीवाद को नहीं

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Authore By Deepak yadav  महात्मा गांधी की विचारधारा   को गांधीवाद के नाम से जाना जाता है. महात्मा गाँधी उस उस व्यक्ति का नाम हैं, जो असत्य को सत्य से, हिंसा को अहिंसा से, घ्रणा को प्रेम से तथा अविश्वास को विश्वास से जीतने में विश्वास करते थे. भले ही आज गांधीजी नही हैं, लेकिन उनके विचारों, आदर्शों तथा सिद्धांतों के रूप में वे जिन्दा हैं. गाँधी के विचार क्रियात्मक योगदान में जितने उस समय प्रासंगिक थे, आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं. महात्मा गाँधी ने जनभावना को महत्व देकर और परम्परागत राष्ट्रवाद की विचार धरा में सुधार करते हुए, 21 वीं सदी के भारत के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया. महात्मा गाँधी ने विभिन्न प्रकार के रचनात्मक कार्यों के द्वारा विभिन्न समुदायों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य किया. गांधीवाद की विचारधारा परम्परागत राष्ट्रवाद के’ विचारों से ऊपर उठकर थी. गांधी पूरे विश्व को अपना राष्ट्र मानते थे. वे भारतीय वैदिक परम्परा में कही गईं, बातों के अनुसार विश्व पूजन तथा माता भूमि पुत्रोः प्रथ्विया में विश्वास करते थे. मोहनदास करमचंद गाँधी ने संकटग...

गांधी को मारा जा सकता है गांधीवाद को नहीं

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Authore By Deepak yadav  महात्मा गांधी की विचारधारा   को गांधीवाद के नाम से जाना जाता है. महात्मा गाँधी उस उस व्यक्ति का नाम हैं, जो असत्य को सत्य से, हिंसा को अहिंसा से, घ्रणा को प्रेम से तथा अविश्वास को विश्वास से जीतने में विश्वास करते थे. भले ही आज गांधीजी नही हैं, लेकिन उनके विचारों, आदर्शों तथा सिद्धांतों के रूप में वे जिन्दा हैं. गाँधी के विचार क्रियात्मक योगदान में जितने उस समय प्रासंगिक थे, आज के समय में भी उतने ही प्रासंगिक बने हुए हैं. महात्मा गाँधी ने जनभावना को महत्व देकर और परम्परागत राष्ट्रवाद की विचार धरा में सुधार करते हुए, 21 वीं सदी के भारत के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया. महात्मा गाँधी ने विभिन्न प्रकार के रचनात्मक कार्यों के द्वारा विभिन्न समुदायों के मध्य समन्वय स्थापित करने का कार्य किया. गांधीवाद की विचारधारा परम्परागत राष्ट्रवाद के’ विचारों से ऊपर उठकर थी. गांधी पूरे विश्व को अपना राष्ट्र मानते थे. वे भारतीय वैदिक परम्परा में कही गईं, बातों के अनुसार विश्व पूजन तथा माता भूमि पुत्रोः प्रथ्विया में विश्वास करते थे. मोहनदास करमचंद गाँधी ने संकटग...

निजीकरण से जनता को क्या नुकसान होगा

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Authore by Deepak yadav    किसी क्षेत्र या उद्योग के स्वामित्व को जब सरकारी हाथों से लेकर निजी हाथों में सौंपा जाता है, तब वह निजीकरण कहलाता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी प्रदेश विशेष की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना होता है। हाल के दिनों में यह प्रयोग भारतीय रेलवे के साथ करने की भी कोशिशें हुई हैं, जिसने कुछ वर्गों को आक्रोशित करने का कार्य किया है, जबकि कुछ एक वर्ग सरकार के इस कदम से प्रभावित भी हुए हैं। देश की अर्थव्यवस्था से लेकर आम जन-जीवन को यह कैसे प्रभावित करेगा यह समझना ज़रूरी है। देश के लिए यह निजीकरण कितना अच्छा है या कितना बुरा है इसपर विचार करना आवश्यक है। 8 मई 1845 को स्थापित किया गया भारतीय रेलवे आज विश्व का  चौथा  सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। भारतीय अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा सहयोग इसी क्षेत्र का है परंतु आज सरकार को इस क्षेत्र को निजी हाथों में सौंपना बेहतर नज़र आ रहा है। इसकी शुरुआत हाल के दिनों में पूर्ण रूप से निजी कंपनी द्वारा चलाई गई तेजस एक्सप्रेस से हुई, जिसमें दिए गए सुख-सुविधाओं  कई लोग इस निजीकरण का कर रहे हैं विरोध इस बात की स...

किसान आंदोलन 2020 21

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Authore by Deepak yadav  सरकार सितंबर 2020 में तीन कृषि कानून लेकर आई ,  जैसे तैसे संसद में यह तीनों कानून पास हो गए हैं पर किसानों को यहां पसंद नहीं आए किसानों ने सरकार से आगाह किया कि इन तीनों कानूनों को रद्द कर दिया जाए वरना हम आंदोलन करेंगे सरकार ने उनकी बात नहीं मानी,  किसानों ने आंदोलन प्रारंभ किया किसान  दिल्ली की बॉर्डर पर जाकर खड़े हो गए पुलिस ने उन्हें वही रोक लिया खासकर इनमें से हरियाणा व पंजाब के किसान थे लगभग 6 महीने से चल रहे इस आंदोलन रहा था आखिरकार किसानों को इन कानूनों से क्या समस्या थी उनकी आंदोलन करने की क्या वजह थी किसानों का मानना था कि हमारी फसल मंडियों में नहीं बल्कि उद्योगपति खरीदेंगे वह भी मनमाने ढंग से,   मंडिया खत्म कर दी जाएगी इन कानून के बाद एमएसपी की गारंटी सरकार लिखित रूप में नहीं दे रही थी किसान चहा रहे थे कि इसकी गारंटी सरकार कानून में लिख कर दे एक समस्या यह भी है कि छोटे छोटे किसान जिलों में फसल नहीं भेज सकते थे तो वह दूसरे राज्यों में अपनी फसल लेकर कैसे जा सकते थे तथा किसी भी विवाद का न्याय क्षेत्र एसडीएम कार्य...

वो पुराना खत आज भी नई अलमारी में है

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  वो पुराना खत आज भी नई अलमारी में है ,  उम्मीद की एक किरण आज भी सूरज में है  वो खुशबू आज भी इन हवाओं में है  वो  पुराना खत आज भी नई अलमारी में है  आज भी स्याही नहीं सूखी उस खत की  अब तुम बताओ वो मजा whatsapp facebook की चैट में कहां है  , वो खत किताबों के बीच में है, कलम से लिखे गए वो अल्फाज आज भी दिल में है  सिलवटें पड़ गई तेरी लिखावट के उस कागज में , फिर भी मैंने उससे आज तक संभाल कर रखा है  और तुझे कैसे बताएं वो  खत अलमारी में छुपा के रखा है ,  जब रुक गया था एक पल के लिए , जिंदगी थम गई थी एक पल के लिए,  फिर तेरे उस कागज के टुकड़े से शुरूर  आया उम्र भर के लिए , आओ हमारी महफिल में तुम्हें भी बताएंगे कैसे हमने पुराना खत नई अलमारी में सजा के रखा है यह भी दिखायेंगे चलो अब छोड़ो तुम थोड़ी मानोगी की  वो पुराना खत आज भी नई अलमारी में है  ✍️✍️✍️,,,,,Deepak७102

वर्तमान में मीडिया की भूमिका क्या है ?

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Authore Deepak yadav लोकतंत्र में तीन स्तंभ होते हैं कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका और तीनों पर नजर रखने का काम होता है लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया का के वर्तमान समय में यहां काम मीडिया कर रहा है कि मीडिया अपनी भूमिका निभा रहा है वर्तमान में तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता आज मीडिया एक एजेंडे के साथ काम करता है जनहित से संबंधित समस्या को तो भूल ही गया है उसे बस टीआरपी की चिंता है मीडिया में बस अब पत्रकारिता नहीं देखी जाती उसे मात्र टीआरपी की भूख बिकती है और यहां बहुत चिंता की बात थी देश में भयंकर बेरोजगारी है इन देश में भयंकर कोरोना महामारी है देश की जीडीपी सबसे निचले पायदान पर हैं देश में भयंकर भुखमरी है एक गरीब किसान परेशान हैं सरकार और मीडिया इस पर बात तक नहीं करती है आपातकाल के समय भी मीडिया ऐसे ही सरकार के सामने झुक गया था और लोगों को भी लगता है कि मीडिया वर्क में भूमिका नहीं निभा रहा है आज के प्राइमटाइम में हिंदू मुसलमान पर बहस चलती है कहीं तो नोटों में चीज की खोज करते हैं तो कई अंधविश्वास फैलाते हैं पर जनता की समस्या इनको नहीं दिखती है एक नहीं हर मुद्दे पर लगभग मीडिया की भू...